भकूट दोष क्या है व किन परिस्थितियों में इसका परिहार होता है

भकूट दोष क्या है व किन परिस्थितियों में इसका परिहार होता है

कुंडली में चंद्रमा 6-8, 9-5 या 2-12 का संयोजन कर रहा हो, तब भकूट दोष बनता है। अगर वर की चंद्र राशि मेष है, और महिला का कन्या है, तब 6-8 का भकूट दोष बनता है, क्योंकि महिला की चंद्र राशि पुरूष की चंद्र राशि से षष्टम और पुरूष की चंद्र राशि महिला की चंद्र राशि से अष्टम पर होती है। इसी तरह का भकूट दोष चंद्र राशि के 9-5 और 2-12 संयोजन के लिए भी माना जाता है। 6-8 का भकूट दोष शादी शुदा जोड़ो के लिए स्वास्थ्य की गंभीर समस्या पैदा कर सकता है, 9-5 का भकूट दोष संतान की समस्या का कारण होता है, और 2-12 का भकूट दोष वित्तीय समस्याएं पैदा करता है।

कुंडली मिलान के क्रम में यदि भकूट दोष बन रहा है तो शादी नहीं करने के लिए सलाह देते हैं। हालांकि केवल एक दोष के आधार पर कभी भी शादी न करने की सलाह नहीं देनी चाहिए क्योकि ऐसे अनेक दम्पति है जो मेरे पास आते है जिनके कुंडली में भकूट दोष है फिर भी सुखमय दाम्पत्य जीवन व्यतीत कर रहे है। अतः विवाह आदि के लिए कुंडली मिलान की प्रक्रिया में केवल गुण मिलान कर लेना ही पर्याप्त नहीं है यदि कोई ज्योतिषी ऐसा करते है तो यह उचित नहीं है सॉफ्टवेयर के आधार पर कुण्डली मिलान नही करना चाहिए,और न ही बताना चाहिए ऐसा करने से ही ज्योतिषी के प्रति अविश्वास पैदा होता है। अतः विवाह के सम्बन्ध में कोई निर्णय लेने से पहले लड़का और लड़की की कुंडली में ग्रहो की स्थिति, उच्च, नीच, योग व संतान योग कैसा है इस पर विचार करके ही शादी करने और न करने का सलाह देनी चाहिए।

भकूट दोष का दाम्पत्य जीवन पर प्रभाव-

कुंडली मिलान में तीन प्रकार से भकूट दोष बनता है जिसकी चर्चा ऊपर की गई है।

👉 षडा -अष्टक 6/8 भकूट दोष होने से वर-वधू में से एक की मृत्यु हो जाती है या आपस में लड़ाई झगड़ा होते रहता है।

👉 नवम-पंचम ( 9/5) भकूट दोष होने से संतान की हानि होती है या संतान के जन्म में मुश्किल आती है या फिर संतान होती ही नहीं।

👉 द्वी-द्वादश ( 2/12) भकूट दोष होने से वर-वधू को निर्धनता का सामना करना पड़ता या दोनों बहुत ही खर्चीले होते है।

भकूट दोष का परिहार-

भकूट मिलान में तीन प्रकार के दोष होते हैं, जैसे षडाष्टक दोष, नव-पंचम दोष और द्वि-द्वादश दोष होता है, इन तीनों ही दोषों का परिहार भी हो जाता है।

🌼 षडाष्टक दोष का परिहार

यदि वर-वधु की मेष/वृश्चिक, वृष/तुला, मिथुन/मकर, कर्क/धनु, सिंह/मीन या कन्या/कुंभ राशि है तब यह मित्र षडाष्टक होता है अर्थात इन राशियों के स्वामी ग्रह आपस में मित्र होते हैं. मित्र राशियों का षडाष्टक शुभ माना जाता है।

यदि वर-वधु की चंद्र राशि स्वामियों का षडाष्टक शत्रु वैर का है तब इसका परिहार करना चाहिए।

मेष/कन्या, वृष/धनु, मिथुन/वृश्चिक, कर्क/कुंभ, सिंह/मकर तथा तुला/मीन राशियों का आपस में शत्रु षडाष्टक होता है इनका पूर्ण रुप से त्याग करना चाहिए।

यदि तारा शुद्धि, राशियों की मित्रता हो, एक ही राशि हो या राशि स्वामी ग्रह समान हो तब भी षडाष्टक दोष का परिहार हो जाता है।

🌼 नवम पंचम दोष का परिहार-

नवम पंचम दोष का परिहार भी शास्त्रों में दिया गया है, जब वर-वधु की चंद्र राशि एक-दूसरे से 9/5 पर स्थित होती है तब नवम पंचम दोष माना जाता है, नवम पंचम का परिहार निम्न से हो जाता है-

यदि वर की राशि से कन्या की राशि पांचवें स्थान पर पड़ रही हो और कन्या की राशि से लड़के की राशि नवम स्थान पार पड़ रही हो तब यह स्थिति नवम पंचम की शुभ मानी गई है।

मीन/कर्क, वृश्चिक/कर्क, मिथुन/कुंभ और कन्या/मकर यह चारों नव-पंचम दोषों का त्याग करना चाहिए।

यदि वर-वधु की कुंडली के चंद्र राशिश या नवांशपति परस्पर मित्र राशि में हो तब नवम-पंचम का परिहार होता है।

🌼 द्वि- द्वादश दोष का परिहार-

लड़के की राशि से लड़की की राशि दूसरे स्थान पर हो तो लड़की धन की हानि करने वाली होती है लेकिन 12वें स्थान पर हो तब धन लाभ कराने वाली होती है।

द्वि-द्वादश दोष में वर-वधु के राशि स्वामी आपस में मित्र हैं तब इस दोष का परिहार हो जाता है।

सिंह और कन्या राशि द्वि-द्वार्दश होने पर भी इस दोष का परिहार हो जाता है परन्तु इसमें कई ज्योतिषियो का मतभेद है।

कुंडली मिलान का सही तरीका सिर्फ सॉफ्टवेयर पर निर्भर न हो यदि रिश्ता अच्छा है तो दोनों की कुंडली का विश्लेषण अलग अलग करवा लेना ज्यादा उचित है आने वाली महादशा किस ग्रह की है संतान योग कैसा है विवाह के सुख की आयु कितनी है नक्षत्र स्वामी कहा विराजित है । लड़की और लड़के वर्ण मिलान भी के जगह काम कर जाता है ऐसे बहुत सी स्थिति बन ही जाती , परन्तु कुंडली मे यदि जीवनसाथी की आयु कम हो तो सामने वाली कुंडली मे आयु देखे संतान सुख का अभाव है तो वो भी देखना अनिवार्य है।

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