अक्षय तृतीया का दिन किस कारण माना जाता है इतना शुभ

अक्षय तृतीया, अ+क्षय यानी कभी क्षय ना होने वाला, खत्म ना होने वाला। तृतीया मतलब तीन, वैशाख माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया को अक्षय तृतीया का पर्व मनाया जाता है। इस दिन मूहूर्त भी नहीं देखे जाते, इस तिथि में पूरा समय शुभ मुहूर्त माना जाता है।

अक्षय तृतीया से जुड़ी पौराणिक कथा-

प्राचीन काल में सदाचारी तथा देव-ब्राह्मणों में श्रद्धा रखने वाला धर्मदास नामक एक वैश्य था। उसका परिवार बहुत बड़ा था। इसलिए वह सदैव व्याकुल रहता था। उसने किसी से इस व्रत के माहात्म्य को सुना। कालांतर में जब यह पर्व आया तो उसने गंगा स्नान किया।

विधिपूर्वक देवी-देवताओं की पूजा की। गोले के लड्डू, पंखा, जल से भरे घड़े, जौ, गेहूं, नमक, सत्तू, दही, चावल, गुड़, सोना तथा वस्त्र आदि दिव्य वस्तुएं ब्राह्मणों को दान की। स्त्री के बार-बार मना करने, कुटुम्बजनों से चिंतित रहने तथा बुढ़ापे के कारण अनेक रोगों से पीड़ित होने पर भी वह अपने धर्म-कर्म और दान-पुण्य से विमुख न हुआ। यही वैश्य दूसरे जन्म में कुशावती का राजा बना। अक्षय तृतीया के दान के प्रभाव से ही वह बहुत धनी तथा प्रतापी बना। वैभव संपन्न होने पर भी उसकी बुद्धि कभी धर्म से विचलित नहीं हुई। अक्षय तृतीया के दिन इस कथा के श्रवण से अक्षय पुण्य फल की प्राप्ति होती है।

अक्षय तृतीया के दिन होने वाली महत्वपूर्ण

🚩 सतयुग और त्रेता युग का प्रारंभ यानि युगाब्द की शुरुआत अक्षय तृतीया से हुई थी।
🚩 भगवान हयग्रीव व परशुराम का जन्म इसी दिन हुआ था।
🚩 भगीरथ जी तपस्या के बाद गंगा जी को इसी दिन धरती पर लाए थे।
🚩 नर नारायण की पूजा के लिए बद्रीनाथ तीर्थ के कपाट इसी दिन खुलते हैं।
🚩 कुबेर जी ने मां लक्ष्मी की पूजा इसी दिन शुरू की थी, कुबेर जी की लक्ष्मी पूजा की परंपरा के आधार पर ही भारत में इस दिन लाल कपड़े में नए बही खाते शुरू किए जाते हैं।
🚩 महाभारत में द्रौपदी को भगवान श्री कृष्ण ने अक्षय पात्र भी इसी दिन दिया था, अक्षय पात्र में रखी हुई कोई भी वस्तु समाप्त नहीं हो सकती थी।

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